सरोजिनी नायडू को इस वजह से कहा जाता है ‘भारत की कोकिला’, स्वतंत्रता संग्राम में दिया अपना खूब योगदान!

देश की पहली राज्यपाल और ‘द नाइटिंगेल ऑफ इंडिया’ यानि ‘भारत की कोकिला’ सरोजिनी नायडू की आज जयंती है। बेहतरीन कवियत्री, कार्यकर्ता और गीतकार के रूप में सरोजिनी नायडू ने देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी अपनी पहचान बनाई। यही नहीं, उन्होंने स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में खास योगदान दिया और कई सारी कुर्बानियां भी दी। उनके त्याग और योगदान की वजह से भारत में आज हर कोई उन्हें जानता है और मानता भी है।

लगभग 12 साल की उम्र से साहित्य में अपना करियर शुरू करने वाली सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में हुआ था। वर्ष 2014 से सरोजिनी नायडू की जयंती को ‘राष्ट्रीय महिला दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा। हमेशा महिलाओं के लिए आवाज उठाने वाली सरोजिनी नायडू के जयंती पर हम आपको बताएंगे की, कैसे उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया और उन्हें ‘नाइटिंगेल ऑफ इंडिया’ यानि ‘भारत की कोकिला’ के नाम से क्यों नवाजा गया।

 

देश की जानी-मानी हस्ती

सरोजिनी नायडू भारत देश की जानी-मानी हस्तियों में से एक हैं। आजादी के समय उन्होंने खूब योगदान दिया है। वर्ष 1905 में, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में, आगे बढ़ते हुए उन्होंने इस आंदोलन में भाग लिया। साथ ही इस आंदोलन के लिए घर-घर जाकर आम महिलाओं को भी स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने की प्रेरणा दी। एक बेहतर वक्ता के रूप में पहचानी जाने वाली सरोजिनी नायडू द्वारा कलकत्ता में साल 1906 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और इंडियन सोशल कॉन्फ्रेंस में दिए गए भाषण को खूब सराहा गया। इसके बाद साल 1916 में उन्होंने लखनऊ पैक्ट का समर्थन किया था, जो ब्रिटिश राजनीतिक सुधार के लिए हिन्दू मुस्लिम मांगों का संयुक्त मसौदा था।

सरोजिनी नायडू के भाषण का एक अलग ही असर होता था जो उन्हें बाकि लोगों से अलग बनाता था। बहुमुखी प्रतिभा रखने वाली सरोजिनी नायडू साल 1917 में ‘विमेंस इंडिया एसोसिएशन’ की सह संस्थापक रहते हुए अपनी सहेली एनी बेसेंट के साथ लंदन में सार्वभौमिक मताधिकार के समर्थन में अपने भाषण से लोगों को खूब आकर्षित किया था।

और पढ़े: Know These 10 Women Who Contributed To Drafting The Constitution Of India

साल 1919 में सरोजिनी नायडू ने लंदन में जाकर होम रूल लीग के हिस्से के रूप में देश के अधिकारों की पैरवी भी की। इसके बाद ही उन्होंने गांधी जी के साथ जुड़कर असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेने का फैसला लिया और देश के लिए पुरे मन से काम किया। साल 1925 सरोजिनी के लिए बड़ा साल साबित हुआ जब उन्हें कानपुर कांग्रेस अधिवेशन में अध्यक्ष के रूप में चुना गया। ये उपलब्धि हासिल करने वाली दूसरी महिला के रूप में सरोजिनी नायडू नाम सामने आया था। नमक सत्याग्रह में महिलाओं की भागीदारी के लिए बापू ने सरोजिनी नायडू का नाम अग्रेषित कर उनसे भाग लेने का आग्रह किया। सरोजिनी नायडू स्वतंत्रता आंदोलन के समय में महिलाओं की एक बड़ी आवाज बन हमेशा आगे रही हैं।

ऐसे मिला ‘भारत कोकिला’ का नाम

सरोजिनी नायडू की मुलाकात साल 1914 में पहली बार महात्मा गांधी से हुई और ये कारवां यही नहीं रुका। इस मुलाकात के बाद सरोजनी नायडू के जीवन में एक बड़ी क्रांति ने प्रवेश किया। इसके बाद उन्होंने भारत के लिए कुछ करने का दृढ़ संकल्प लिया और स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने का फैसला लिया। सरोजिनी नायडू और महात्मा गांधी के बीच काफी अच्छा बॉन्ड था, दोनों देश की सेवा में अपनी प्राण निछावर करने के हमेशा तैयार रहते थे। बापू ने ही सरोजिनी नायडू का नाम ‘नाइटिंगेल ऑफ इंडिया’ यानि ‘भारत की कोकिला’ रखा था। वहीं सरोजिनी उन्हें मिकी माउस कह कर बुलाया करती थीं।

और पढ़े: Sara Ali Khan Is Freedom Fighter Usha Mehta In This Exciting First Look From ‘Ae Watan Mere Watan’

कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सरोजिनी नायडू के द्वारा दिए जाने वाले भाषण और उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर महात्मा गांधी ने उन्हें ‘भारत कोकिला’ की उपाधि दी थी। अपने पत्रों में गांधी जी उन्हें कभी ‘डिअर बुलबुल’, ‘मदर’ तो कभी ‘डिअर मीराबाई’ कहकर संबोधित करते थे।

आज ‘भारत की कोकिला’ यानी के सरोजिनी नायडू की जयंती पर हम उन्हें शत शत प्रणाम करते है।