‘Vadh’ Review: सस्पेंस और थ्रिल से भरी है यह भावनात्मक कहानी, संजय मिश्रा और नीना गुप्ता ने बखूबी निभाया किरदार!

कभी कभी जीवन में कुछ ऐसी घटनायें घट जाती है, जब हमारे पास एक बेहद जरुरी निर्णय लेने के अलावा और कोई पर्याय नहीं बचता। कुछ ऐसी ही घटना या कहानी कहिये, इस फिल्म ‘वध’ की है। जसपाल सिंह संधू और राजीव बरनवाल यह इस फिल्म के दो निर्देशक है और इन्होने फिल्म को लाजवाब बनाने पूरी कोशिश की है। LUV Films, Next Level Production, और J Studios बैनर्स के अंडर लव रंजन, अंकुर गर्ग और नीरज रुहिल इस फिल्म को प्रोड्यूस किया है। ‘वध’ के मुख्य भूमिकाओं में दिग्गज कलाकार नीना गुप्ता और संजय मिश्रा है, जिन्होंने अपने अभिनय से फिर से एक बार खुद को बड़े परदे पर साबित किया है। साथ ही मानव विज, सौरभ सचदेवा जैसे अनुभवी कलाकार भी इस फिल्म में दिखाई देते है। ‘वध’ ९ दिसंबर को थिएटर में दर्शकों के लिए रिलीज हो गयी है।

कभी कभी जीवन में कुछ ऐसी घटनायें घट जाती है, जब हमारे पास एक बेहद जरुरी निर्णय लेने के अलावा और कोई पर्याय नहीं बचता। उस एक घटना के वजह से हमारा पूरा जीवन तहस नहस हो जाता है, और हम उसे देखने के बावजूद भी हमें ऐसे लगता है की हम कुछ कर नहीं पाएंगे। हम अपनी ही किस्मत के सामने लाचार हो जाते है, जीवन जैसे चल रहा हम अपना लेते है। लेकिन फिर भी जीवन की कठिनाइयां काम नहीं होती। फिर हमें उठाना पड़ता है एक ऐसा कदम जिसके वजह से हमारे साथ हमारे परिवार की भी जिंदगी पहले की तरह नहीं रहती। कुछ ऐसी ही घटना या कहानी कहिये, इस फिल्म ‘वध‘ की है।

प्लॉट (Plot)

भारत में ऐसे कई माता-पिता है जिनके बच्चे उन्हें छोड़ फॉरेन में अच्छे से सेटल हो गए है। इनमें से कई तो अपने माता पिता को भूल भी गए है, और बेचारे बूढ़े माँ-बाप आज भी अपने बच्चों का बेसब्री से इंतजार करते बैठे रहते है। वैसे ही संजय मिश्रा और नीना गुप्ता– शंभुनाथ और मंजू एक बुजुर्ग दम्पत्ति है जिन्होंने अपने इकलौते बेटे के जिद करने पर अपना घर गिरवी रख कर उसे पढ़ने के लिए परदेस भेज दिया। शंभुनाथ (Sanjay Mishra) एक मास्टर है जो अपने छोटे से घर में बच्चो को पढ़ा कर परिवार का गुजारा करते है। उनके परिवार में पत्नी मंजू (Neena Gupta) है जो काफी समझदार हाउस वाईफ है और अपने घुटनों के दर्द से परेशान रहती है। उनका बेटा फॉरेन जाने के बाद शादी कर के वही सेटल होता है। अपने माँ बाप को देने जैसे उसके पास वक़्त की कमी हो गयी हो, वैसे ही पैसों की भी होने लगती है।

बेटे के स्वाभाव का यह बदलाव शंभुनाथ को पता चल जाता है, लेकिन मंजू बेटे के प्यार में यह सब नज़रअंदाज़ कर देती है। गिरवी रखे घर का हफ्ता तो शंभुनाथ ऐसे कैसे चूका रहे होते है, लेकिन हफ्ता वसूलने आने वाला गुंडा उन्हें हमेशा उनके घर पर आ कर दोनों पति पत्नी को परेशान करता रहता है और बात बात पर उनका अपमान करता रहता है। इस पियक्कड़ और नशेड़ी गुंडे का किरदार सौरभ सचदेवा ने बखूबी निभाया है। इन सब परेशानियों में इन बुजुर्गों के ख़ुशी का एक ही सहारा है, पड़ोसी की छोटी बेटी बिल्ली। “ये बिल्ली दो घर छोड़ के हमारे घर में नहीं पैदा हो सकती थी?” अपने बच्ची की आस में जब मंजू अपने पति शंभुनाथ को यह बोल देती है, तब आँखों से आंसू नहीं रुकते।

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कहानी में ट्विस्ट (Twist)

बात तब तक ठीक थी जब तक शंभुनाथ के हाथों से एक खून नहीं हो जाता। इस खून को छुपाने के लिए शंभुनाथ बेरहमी का ही रास्ता अपनाते है। यह फिल्म का बहुत बड़ा और चौंका देने वाला ट्विस्ट है। हम कभी कल्पना भी नहीं कर सकते की यह सब हो सकता है। मध्यांतर तक फिल्म काफी इमोशनल बनी रहती है। लेकिन फिल्म का दूसरा चरण काफी रोमांचित करने वाला साबित होता है। इस खून को छुपाने के लिए और पुलिस से बचने के लिए शंभुनाथ कई योजनाए बनाते है। क्यों की वह इसे खून नहीं मानते, वह मानते है ‘वध‘!!

अब वह खून किसका होता है? उसे छुपाने शंभुनाथ क्या तरीके आजमाते है? पत्नी मंजू उनका साथ देती है की नहीं? पुलिस को सबुत मिलते है के नहीं? यह सब जानने के लिए आपको ‘वध’ जरूर देखनी चाहिए। मुझे यकीन है आप भी इस फिल्म को देख बिलकुल निराश नहीं होंगे।

जब दो अनुभवी कलाकार बड़े परदे पर एकसाथ उतारते है तब वह फिल्म सिर्फ फिल्म नहीं रहती, वह हो जाती है एक भावना। ‘वध’ के लीड एक्टर्स जो की हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज कलाकारों में गिने जाते है, संजय मिश्रा और नीना गुप्ता अपने अभिनय पर शत-प्रतिशत खरे उतरे है। फिल्म की कहानी काफी रोमांचक तो है ही लेकिन सस्पेंस, थ्रिल और कई भावनाओं से भी भरी हुई है। संजय मिश्रा और नीना गुप्ता दोनों अभिनय में तीन दशक पूरे करने की कगार पर हैं।

संगीत

फिल्म के संगीत से आप कोई भी अपेक्षाएं ना रखे तो ही बेहतर है क्यों की इसमें संगीत की कोई गुंजाइश नहीं है। वध के निर्माताओं ने बुद्धिमानी से कहानी को अनावश्यक गानों से भरने से बचाया हैं। फिल्म में चलता हुआ बैकग्राउंड संगीत भी काफी सामान्यसा है और मुझे इतना प्रभावशाली नहीं लगा। अन्य तकनीकी पहलू, जैसे संपादन और छायांकन, अच्छे हैं लेकिन वास्तव में असाधारण नहीं हैं।

कलाकार (Cast and Crew)

जसपाल सिंह संधू जो की एक निर्माता और अभिनेता भी रह चुके है वह ‘वध’ के निर्देशकों में से एक है। इन्होने कई पंजाबी फिल्मे भी बनायीं है। लेकिन बॉलीवुड की यह उनकी पहली फिल्म है। वध के दूसरे निर्देशक है राजीव बरनवाल जो की हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के प्रतिभाशाली निर्देशकों में से एक है। तोह यह लाज़मी है की इस बेहतरीन निर्देशकों की जोड़ी ने बनायीं हुई फिल्म भी बेहतरीन ही साबित होगी। संजय जी और नीना जी की तो बात ही अलग है, जैसे की यह दोनों इसी किरदारों के लिए ही बने थे। लेकिन प्रजापति पांडे इस गुंडे का किरदार निभाने वाले सौरभ सचदेवा ने अपने शानदार अभिनय से फिल्म में जान डाल दी। पुलिस के शक्ति सिंह का किरदार निभाने वाले मानव विज ने भी तगड़ा अभिनय किया और अपने किरदार को बखूबी निभाया है ऐसे मुझे लगा।

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मत (Verdict)

फिल्म की कहानी और कलाकारों का अभिनय दमदार रहा है। सारे कलाकारों ने सही तरीके से किरदार निभाने अपना खून पसीना एक कर दिया। ‘वध’ एक बेहतरीन पहलुओं के साथ बनायीं काफी अच्छी फिल्म है। संजय मिश्रा, नीना गुप्ता जैसे अनुभवी कलाकारों के साथ मानव विज, सौरभ सचदेवा जैसे बेहतरीन अभिनेताओं को लेकर निर्देशकों ने एक उत्तम फैसला लिया है। कलाकारों ने अपने अभिनय से फिल्म को एक अलग स्तर पर पहुंचा दिया है, जिससे दर्शकों की उम्मीदें बढ़ जाती है। फिल्म की सिनेमेटोग्राफी भी काफी हद तक अच्छी है। मध्यान्तर से पहले मतलब फिल्म का पहला हिस्सा स्लो ट्रैक पर चलता रहता है, जो मुझे ठीक ठाक लगा। लेकिन मध्यान्तर के बाद फिल्म में कई ट्विस्ट और रहस्य आ जाते है, जिसके वजह से आप एक मिनट के लिए भी अपना ध्यान भटकाना नहीं चाहेंगे।
एक्टिंग, स्टोरी, सिनेमेटोग्राफी को देख मैं ‘वध’ को 3 स्टार्स दूंगी। फिल्म के संगीत पर इतनी मेहनत नहीं ली गयी, इसीलिए गानों को तो आप छोड़ ही दो। साथ ही फिल्म का अंत मुझे इतना खास नहीं लगा, एंडिंग इससे अच्छी भी हो सकती थी ऐसे मुझे लगा।

यह फिल्म आज 9 दिसंबर को थिएटर में रिलीज हो रही है। अगर आपको एक अच्छी मर्डर मिस्ट्री या सस्पेंस थ्रिलर फिल्म देखनी हो, या आप अच्छे अभिनय की तलाश में हो तो अपने नजदीकी थिएटर में जाकर ‘वध‘ जरूर देखें।

Tejal Limaje: Who says an introvert can't be a good artist? I am an artist, writing is my art. You can call me an emotional introverted linguistic writer. What cannot be shared through my speech, I share through my writing and words. Writing is my love, desire, passion.