क्यों किया जाता है होलिका दहन? जानें महत्त्व, पूजा विधि और इसकी कहानी!

होली भारत में सबसे लोकप्रिय त्योहारों में से एक है। इस दिन लोग नफरत भुलाकर अपनों को रंग लगाते हैं और मिठाइयां बाँटते है। सारे गिले शिकवे खत्म कर इस त्योहार में लोग ढेर सारे रंगों से होली खेलते हैं। वहीं, होली के एक दिन पहले मनाए जाने वाले होलिका दहन का भी काफी महत्व है। हिन्दी पंचांग के अनुसार हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन का पर्व मनाया जाता है और अगले दिन रंगों का त्यौहार बड़े धूमधाम से मनाते है। अगर आपको इस बारे में कुछ भी पता नहीं तो आज हम आपको होलिका दहन क्यों मनाया जाता है और इसके पीछे की कहानी बताएंगे।

जाने मुहूर्त और पूजा विधि

कैलेंडर के अनुसार इस साल होलिका दहन 7 मार्च और होली 8 मार्च को मनाई जानी है। होली के एक दिन पहले मनाए जाने वाले होलिका पर्व का खास महत्व है। माना जाता है कि इसके बिना होली अधूरी है। मान्यताओं के अनुसार, पूर्णिमा के दिन प्रदोष काल में होलिका दहन किया जाए तो यह अधिक शुभ होता है। इस दौरान भद्रा मुख को छोड़कर रात में होलिका दहन करना शुभ माना जाता है।

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इस साल होलिका दहन 07 मार्च को मनाई जानी है। ऐसे में पूर्णिमा तिथि 06 मार्च को शाम 04 बजकर 17 मिनट से शुरू होकर 07 मार्च को शाम 06 बजकर 09 मिनट तक रहेगी। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 07 मार्च को 06 बजकर 24 मिनट से रात 08 बजकर 51 मिनट तक ही है। कहा जाता है कि, होलिका दहन करने से पहले होलिका की पूजा करने से आपके मन में किसी भी प्रकार का डर दूर होता है और ग्रहण के अशुभ प्रभाव भी दूर होते है।

विधि

होलिका दहन के दिन महिलाएं ‘होलिका’ की पूजा करने जाती हैं।

घर के पास या किसी चौराहे पर खूब सारी लकड़ियों को इक्कठा कर के उसमें अग्नि प्रज्वलित की जाती हैं।

इससे पहले होलिका दहन के लिए इकट्ठा की गई लकड़ियों को कच्चे सूत से तीन या सात बार लपेटते है।

इसके बाद इस पर गंगा जल, फूल और कुमकुम छिड़क कर इसे शुद्ध करते है।

इसकी पूजा करने के लिए चावल, फुल, सूत, गुड़, हल्दी, मुंग, बताशे, गुलाल, नारियल, माला, कुमकुम और बाकि चीजों का प्रयोग करते है। इसके साथ ही गेहूं की बालीयों का भी प्रयोग होता हैं।

होलिका मंत्र का उच्चारण करते हुए होलिका की सात बार परिक्रमा करते है।

होलिका दहन की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा हिरण्यकश्यप को भगवान ब्रह्मा से एक वरदान मिला था जिसने उन्हें पूरी तरह से अजेय बना दिया था। वह चाहता था कि सभी उसे भगवान की तरह पूजें। हालांकि उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था और उसने अपने पिता की पूजा करने से इनकार कर दिया था। जिससे उनके पिता राजा हिरण्यकश्यप गुस्सा होकर अपने ही बेटे को मारने की नीति बनाने लगे।

कुछ समय बाद राजा ने अपनी बहन होलिका से प्रह्लाद को मारने के लिए कहा। वहीं होलिका को दैवीय वरदान प्राप्त था कि वह आग में कभी नहीं जलेगी। होलिका अपने भतीजे प्रह्लाद को गोद में लेकर अलाव में बैठ गई थी, लेकिन भगवान को मानने वाले प्रह्लाद को एक खरोच तक नहीं आई जबकि उनकी होलिका जलकर राख हो गई। इसके बाद ही हर साल बुराई पर अच्छाई की जीत की सीख देने वाला होलिका दहन का पर्व मनाया जाता है।

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इस साल होलिका दहन के दिन आप भी अपने सारे गिले-शिकवे खत्म करके अपने लोगों समेत अपने दुखों को दूर करें और अपने सभी कष्टों को ‘होलिका दहन’ में त्याग दें। हम आपको होलिका दहन और होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं देते हैं।